अटल बिहारी वाजपेयी की आज पांचवीं पुण्यतिथि. देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है. भारतीय राजनीति में अटल जी ने वो नए आयाम स्थापित किए जिसे उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है. चुनावी राजनीति में वो हमेशा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में भरोसा करते थे. अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी में कई तरह के प्रसंग हैं जिसमें 1957 का एक वाक्या बेहद अहम है, वाजपेयी, चुनाव लड़ रहे थे लेकिन इलाके के लोग तब हैरान हो गए जब उन्होंने प्रचार के दौरान खुद के लिए नहीं बल्कि विरोधी नेता के प्रचार के लिए पहुंच गए.देश में दूसरा आम चुनाव हो रहा था और अटल बिहारी वाजपेयी यूपी की मथुरा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे थे. उस चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. लोग कहते हैं कि वो अपनी हार की वजह खुद बन गए.

1957 में मथुरा सीट से उनके खिलाफ राजा महेंद्र प्रताप सिंह चुनावी मैदान में थे. महेंद्र प्रताप सिंह का अपना राजनीतिक इतिहास रहा था. आजादी की लड़ाई में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी. लिहाजा उनके योगदान का कद्र करते हुए वाजपेयी जी जब प्रचार करने के लिए जाते थे तो खुद की जगह उन्हें मत देने की अपील करते थे. एक सभा में उन्होंने कहा था कि मथुरा के लोगों आप से अपील करता हूं. बेहतर होगा कि उनकी जगह आप लोग महेंद्र प्रताप सिंह को विजयी बनाएं. खास बात यह कि मथुरा सीट पर महेंद्र प्रताप सिंह के पिता भी अपनी किस्मत आजमा रहे थे. चुनाव के नतीजे जब सामने आए तो महेंद्र प्रताप सिंह भारी मतों से जीतने में कामयाब हुए और अटल बिहारी वाजपेयी चौथे स्थान के साथ साथ अपनी जमानत भी गंवा बैठे.बता दें कि 1957 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ना सिर्फ मथुरा बल्कि लखनऊ और बलरामपुर से भी किस्मत आजमा रहे थे. मथुरा के साथ साथ उन्हें लखनऊ सीट पर हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि बलरामपुर सीट जीतकर वो संसद में पहुंचने में कामयाब हुए.